
- इस बार महाकुंभ में 40 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं के शामिल होने का अनुमान लगाया जा रहा है।
- 144 साल बाद दुर्लभ संयोग में रविवार की आधी रात संगम पर पौष पूर्णिमा की प्रथम डुबकी के साथ महाकुंभ का शुभारंभ हुआ।
Maha Kumbh 2025 Prayagraj : भारत की आध्यात्म,सनातन संस्कृति और आस्था के प्रतीक महाकुंभ का आगाज आज पौष पूर्णिमा के अमृत स्नान से आरम्भ हो गया है।
सुबह से ही श्रद्धालु गंगा, यमुना और सरस्वती (अदृश्य) नदी के संगम में डुबकी लगा रहे हैं । आधी रात से ही श्रद्धालु मेला क्षेत्र में विभिन्न रास्तों से प्रवेश करने लगे और संगम पर भीड़ बढ़ने लगी।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक्स पर पोस्ट कर पौष पूर्णिमा की बधाई दी।
विपरीत विचारों, मतों, संस्कृतियों, परंपराओं स्वरूपों का गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती की त्रिवेणी के तट पर महामिलन 45 दिन तक चलेगा।
प्रशासन ने की भरी सुरक्षा व्यवस्था
भारी संख्या में श्रद्धालु के आगम का अंदेशा है इसी लिए प्रशासन ने महाकुंभ मेले के सुचारू संचालन के लिए विस्तृत व्यवस्था की है और मेला क्षेत्र के साथ-साथ प्रयागराज शहर और आस-पास के स्थानों पर अभूतपूर्व सुरक्षा व्यवस्थ की गई है। प्रशासन द्वारा फायर ब्रिगेड की टीमों को भी मौके पर तैनात किया गया है। कुंभनगरी में कुल 56 अस्थायी थाने बने हैं। 37 हजार पुलिसकर्मी तैनात किए गए हैं, जिन्हें हर तरह की आपात स्थितियों से निपटने की ट्रेनिंग दी गई है।
कब और कहा हुई थी महाकुंभ मेले की शुरुआत
ज्योतिषियों की मानें तो जब बृहस्पति कुंभ राशि और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है, तब कुंभ लगता है। त्रिवेणी संगम के कारण प्रयाग का महाकुंभ सभी मेलों में ज्यादा महत्व रखता है। कहा जाता है कि देवताओं और राक्षसों के बीच समुद्र मंथन के दौरान 14वें रत्न के रूप में अमृत कलश निकला था, जिसे हासिल करने के लिए उनमें संघर्ष हुआ। असुरों से अमृत बचाने के लिए भगवान विष्णु ने विश्व मोहिनी रूप धारण कर वह अमृत कलश अपने वाहन गरुड़ को दे दिया। असुरों ने गरुड़ से वह कलश छीनने का प्रयास किया तो अमृत की कुछ बूंदें प्रयागराज, नासिक, हरिद्वार और उज्जैन में गिर गईं। कहा जाता है कि तब से हर 12 साल बाद इन स्थानों पर कुंभा मेला आयोजित किया जाता है।
महाकुंभ मेला की ऐतिहासिक शुरुआत को लेकर प्राचीन ग्रंथों में सटीक जानकारी नहीं है। कई ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है, लेकिन इनमें मेले के पहले आयोजन के समय और स्थान को लेकर स्पष्टता नहीं है। वहीं कुछ विद्वानों का मानना है कि महाकुंभ की परंपरा 850 साल पहले शुरू हुई थी और आज तक हर 12 साल बाद इसका आयोजन प्रयागराज में होता है।